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वक्फ बिल के विरोधी हैं देश, धर्म और पूर्वजों के गद्दार? होर्डिंग्स में विपक्ष पर निशाना

Updated on: 10 April, 2025 06:53 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

अब जबकि वक्फ संशोधन विधेयक कानून बन गया है, विभिन्न राजनीतिक दलों के हिंदू सांसदों में इस विधेयक का विरोध करने के प्रति रोष है.

वर्षा गायकवाड़ का बैनर, अरविंद सावंत का बैनर

वर्षा गायकवाड़ का बैनर, अरविंद सावंत का बैनर

जब केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में पारित करने के लिए रखा तो हिंदू सांसदों ने सरकार का समर्थन करने के बजाय संशोधन के खिलाफ मतदान किया. अब जबकि वक्फ संशोधन विधेयक कानून बन गया है और प्रभावी हो गया है, विभिन्न राजनीतिक दलों के हिंदू सांसदों में इस विधेयक का विरोध करने के प्रति रोष है.

सांसद अरविंद सावंत और कांग्रेस की मुंबई-उत्तर मध्य सांसद वर्षा गायकवाड़ की तस्वीरों वाले बैनर कल वर्ली के समर पार्क के सामने और चेंबूर के तिलकनगर में सहकारी टॉकीज के पास देखे गए. इन बैनरों पर मातृभूमि, धर्म, पूर्वजों या देशद्रोहियों के प्रतीक अंकित थे. इस बैनर पर किसी व्यक्ति, संगठन या राजनीतिक दल का नाम नहीं था, इसलिए यह पता नहीं चल सका कि इसे किसने लगाया था.


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसे दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद ने पारित कर दिया. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की. प्रेस बयान में, एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर "मनमाना, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित" होने का कड़ा विरोध किया गया है. इसमें कहा गया है कि संशोधनों ने न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट रूप से सरकार की मंशा को दर्शाता है कि वह वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहती है, इसलिए मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है.


बोर्ड ने कहा कि शीर्ष अदालत "संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक" होने के नाते इन "विवादास्पद संशोधनों को रद्द कर देना चाहिए, संविधान की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए" और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को "कुचलने" से बचाना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक अधिवक्ता एम आर शमशाद ने याचिका का निपटारा किया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तल्हा अब्दुल रहमान, महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी के माध्यम से शामिल थे.


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