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मदुरै में कल्लाझागर चिथिराई महोत्सव की धूम, श्रद्धालुओं का उमड़ा जनसैलाब

Updated on: 11 May, 2025 10:29 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

चिथिराई महोत्सव का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है. यह आयोजन मदुरै की पहचान से जुड़ा है और इसकी झलक तमिल कला, संगीत और परंपरा में साफ देखी जा सकती है.

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तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर मदुरै में इन दिनों आध्यात्मिक उल्लास और सांस्कृतिक परंपरा का रंग चढ़ा हुआ है. मौका है चिथिराई महोत्सव का, जिसमें भगवान कल्लाझागर की भव्य यात्रा देखने के लिए हजारों श्रद्धालु मदुरै की सड़कों पर उमड़ पड़े हैं. यह महोत्सव तमिल कैलेंडर के चिथिरा महीने में मनाया जाता है और इसे राज्य के सबसे प्रमुख धार्मिक आयोजनों में गिना जाता है.

कल्लाझागर, भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जो इस त्योहार के दौरान अलागर कोइल मंदिर से निकलकर वैगई नदी तक आते हैं. इस धार्मिक यात्रा को ‘अलागर की वैगई नदी में प्रवेश’ (Alagar entering Vaigai) के रूप में जाना जाता है. जैसे ही भगवान कल्लाझागर की सवारी नदी के किनारे पहुंचती है, भक्तों का उत्साह चरम पर पहुंच जाता है. लोग फूलों से स्वागत करते हैं, भजन-कीर्तन गाते हैं और भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार करते हैं. 


 



 

इस साल का आयोजन भी बेहद भव्य रहा. प्रशासन की ओर से सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे. पुलिस, स्वास्थ्यकर्मी और स्वयंसेवी संस्थाएँ सेवा में तैनात रहीं. पूरे आयोजन क्षेत्र में लाउडस्पीकर के जरिए भक्तों को निर्देश दिए जा रहे थे ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो.

चिथिराई महोत्सव का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है. यह आयोजन मदुरै की पहचान से जुड़ा है और इसकी झलक तमिल कला, संगीत और परंपरा में साफ देखी जा सकती है. महोत्सव के दौरान स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य और संगीत कार्यक्रम भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे.

भक्तों की मान्यता है कि इस दिन भगवान कल्लाझागर अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए खुद नगर में आते हैं. यह महज एक उत्सव नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जो पीढ़ियों से तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करता आ रहा है.

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