ये बुनियादी ढाँचा यात्रियों की सुरक्षित आवाजाही के लिए पर्याप्त है — लेकिन इसके बावजूद, हर दिन लोग सीधे रेलवे ट्रैक पार करते नजर आते हैं. (Story By: Rajendra B. Aklekar, Pics/ Satej Shinde)
यह प्रवृत्ति न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि आखिर क्यों लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं, जबकि सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं?
पटरियों को पार करते समय अक्सर यात्री आने वाली ट्रेनों से बाल-बाल बचते हैं.
CCTV फुटेज और स्थानीय रिपोर्टों में यह साफ दिखता है कि यह सिर्फ एक-दो लोगों की बात नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में नागरिक इस आदत में शामिल हैं.
स्थानीय प्रशासन और रेलवे बार-बार अपील करते रहे हैं कि नागरिक पुलों और FOB का प्रयोग करें, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है. जागरूकता अभियानों के बावजूद लोग नियम तोड़ने से बाज नहीं आते.
यह स्थिति केवल नियमों की अनदेखी नहीं है, यह एक गंभीर सामाजिक चुनौती है, जहाँ सुविधाएं होने के बावजूद उनका उपयोग नहीं किया जा रहा.
समस्या का हल सिर्फ चेतावनियाँ देना नहीं, बल्कि जनजागरूकता, कड़ी निगरानी और सख़्त प्रवर्तन है.
साथ ही, स्कूलों, स्थानीय संगठनों और मीडिया को मिलकर यह संदेश फैलाना होगा कि सुरक्षित विकल्प अपनाना कमज़ोरी नहीं, समझदारी है.
हमें खुद से पूछना होगा—क्या कुछ कदम ज्यादा चलने से हमारी ज़िंदगी कम हो जाएगी?
जवाब स्पष्ट है: नहीं. बल्कि पुलों का इस्तेमाल करना हमारी और हमारे परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.
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