कोळी समाज वास्तविक त्योहार से दो दिन पहले होलिका दहन मनाते है.
समुदाय का मानना है कि होली का मछली पकड़ने से गहरा संबंध है क्योंकि होली पूर्णिमा के बाद समुद्र में सबसे ऊंचे ज्वार का अनुभव होता है.
साथ ही उनका मानना है कि कोली होलिका दहन से उत्पन्न राख को इस विश्वास के साथ समुद्र में प्रवाहित करते हैं कि इससे समुद्र शांत होता है और मछली पकड़ने के मौसम में उन्हें अच्छी पकड़ पाने में मदद मिलती है.
तस्वीरों में आप देख सकते है कि महिलाएं और पुरुष पेड़ को हल्दी लगाकर इसे पवित्र कर रहे हैं.
होलिका जलाने से एक दिन पहले इसे फूलों से सजाया जाता है.
कोळी समाज इस दौरान पारंपरिक पद्धति से जश्न मनाते हैं.
क्या छोटे... क्या बड़े... सभी इस उत्सव में उत्साह से भाग लेते हैं.
कोळी समाज होलिका जलाने से पहले अरंडी, आम और जामुन के पेड़ों की शाखाओं को जलाकर अग्नि की पूजा करते है.
तो वहीं वर्ली, कोलाबा, वसई के कोळी इलाकों में, इस त्योहार में सुपारी के पेड़ों की शाखाओं को जलाकर मनाया जाता है.
होलिका दहन के दौरान भारी संख्या में कोळी समाज मौजूद रहता हैं.
भक्ति भाव से हर कोई इसमें शामिल होता है.
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