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पुणे में GBS के बढ़ते प्रकोप के बीच पहुंचा WHO, उपचार में करेगा मदद

Updated on: 05 February, 2025 11:18 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

पुणे में WHO की टीमें समुदाय में `सक्रिय मामले की खोज` करने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित कर रही हैं.

प्रतीकात्मक छवि

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पुणे में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के संदिग्ध और पुष्ट मामलों का जवाब देने के लिए महाराष्ट्र में स्वास्थ्य अधिकारियों का समर्थन कर रहा है. पुणे में WHO के निगरानी चिकित्सा अधिकारी चेतन खाड़े ने मिड-डे को बताया कि WHO की टीमें समुदाय में `सक्रिय मामले की खोज` करने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित कर रही हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर संदिग्ध मामले की पहचान, निदान और उपचार हो सके.

अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने संदिग्ध मामलों का पता लगाने और उनका परीक्षण करने तथा पुष्ट मामलों का अनुसरण करने के लिए पुणे नगर निगम (PMC) और राज्य और जिला अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया. पिछले सप्ताह, टीम ने स्थिति की जाँच करने के लिए प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. WHO के अधिकारियों ने कहा कि GBS एक दुर्लभ स्थिति है, जिसका कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है. नगर निगम रोग प्रबंधन के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप, भोजन और हाथ की स्वच्छता और सुरक्षित पानी को बढ़ावा दे रहे हैं. 


जीबीएस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन उपचार से रिकवरी में तेज़ी आ सकती है और लक्षण कम हो सकते हैं. गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) और कोविड-19 के बीच तुलना करना न केवल गलत है, बल्कि नागरिकों में अनावश्यक रूप से दहशत और भय पैदा करने का एक कारण भी है. मंगलवार को मंत्रालय में मीडिया से बात करते हुए, महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाशराव अबितकर ने कहा, "एक दुर्लभ ऑटोइम्यून डिसऑर्डर को वायरल संक्रमण के बराबर समझना और दोनों (जीबीएस और कोविड-19) के बीच तुलना करना न केवल भ्रामक है, बल्कि समाज में भय और दहशत को भी बढ़ावा देता है." 


राज्य में जीबीएस के 9 जनवरी से अब तक (4 फरवरी) 158 मरीज दर्ज किए गए, जिनमें से 38 को छुट्टी दे दी गई और 20 वेंटिलेटर पर हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य सचिव डॉ निपुण विनायक ने कहा, "जीबीएस प्रतिरक्षा प्रणाली से संबंधित है जबकि कोविड-19 एसआरएएस-सीओवी2 वायरस से जुड़ा है. जीबीएस संक्रामक नहीं है". 

आईएएस अधिकारी ने आगे बताया कि 21 दिनों तक प्रशासन डिस्चार्ज किए गए मरीजों पर नज़र रख रहा है. जीबीएस से मरने वाले लोगों के शवों के निपटान के लिए कोई एसओपी है या नहीं, इस बारे में पूछे जाने पर अबितकर ने कहा, "यह कोई संक्रामक बीमारी नहीं है; शवों के निपटान के लिए कोई विशेष प्रोटोकॉल नहीं है." हालांकि, राज्य को पहले ही महाराष्ट्र में रिपोर्ट किए गए सभी मृतकों के मामलों का ऑडिट करने का निर्देश दिया जा चुका है. मंत्री ने यह भी बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने जीबीएस मामलों की स्थिति पर महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के साथ वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की. बैठक में जागरूकता पैदा करने और दवाओं की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित करने के निर्देश दिए गए.


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