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मुंबई की लोकल ट्रेनों में हर दिन 7 लोगों की मौत

Updated on: 17 February, 2025 04:06 PM IST | Mumbai
Rajendra B Aklekar | rajendra.aklekar@mid-day.com

मुंबई लोकल ट्रेनें हर दिन लाखों यात्रियों की जरूरत हैं, लेकिन इसी जरूरत के बीच मौत का एक खतरनाक खेल भी जारी है. भीड़भाड़, सुरक्षा की अनदेखी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते हर दिन औसतन 7-8 लोग अपनी जान गंवा रहे हैं.

Representational Image

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मुंबई लोकल ट्रेनें सिर्फ़ एक यातायात का साधन नहीं, बल्कि शहर की धड़कन हैं. लेकिन यह धड़कन अब तेज़ और बेकाबू हो चुकी है, जहां हर दिन दर्जनों ज़िंदगियां खत्म हो रही हैं. अप्रैल 2024 में, IIT पटना के 25 वर्षीय छात्र अवधेश राजेश दुबे की दर्दनाक मौत ने इस भयावह सच्चाई को फिर से उजागर कर दिया. भीड़भाड़ के दौरान वह मुंबई लोकल से गिर गए, और समय पर चिकित्सा सुविधा न मिलने के कारण उनकी जान चली गई. उनका परिवार न्याय की मांग कर रहा है, लेकिन असली सवाल यह है कि मुंबई की इस ‘मौत की सवारी’ पर लगाम कब लगेगी?
हर दिन सैकड़ों ज़िंदगियां दांव पर

मुंबई की लोकल ट्रेनें हर दिन औसतन 7-8 यात्रियों की मौत का गवाह बनती हैं. अकेले 2024 में अब तक 2,468 लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले 20 वर्षों में 50,000 से अधिक लोग रेलवे हादसों में मारे जा चुके हैं.


>> पश्चिमी रेलवे (2005-2024): 22,481 मौतें, 26,572 घायल.


>> मध्य रेलवे (2009-2024): 29,321 मौतें.

सबसे खतरनाक ज़ोन कल्याण, ठाणे, वसई और बोरिवली बने हुए हैं, जहां हर दिन कोई न कोई अपनी जान गंवा रहा है.


भीड़ का कहर – नई ट्रेनों की जगह ‘समायोजित ऑफिस टाइम’ का सुझाव!

मुंबई लोकल की 3,204 ट्रेन सेवाएं हर दिन 75 लाख यात्रियों को ढो रही हैं. रेलवे कहता है कि भीड़भाड़ को नियंत्रित करने के लिए नई ट्रेनों की गुंजाइश नहीं है, इसलिए कार्यालयों से अपील की जा रही है कि वे अपने कामकाज के समय में बदलाव करें. लेकिन क्या यह समाधान है?

मौत के दो बड़े कारण – लाइन क्रॉसिंग और ट्रेनों से गिरना

2024 में, ठाणे में 151 और बोरीवली में 137 लोग ट्रैक क्रॉस करते हुए मारे गए.

चलती ट्रेन से गिरकर मरने वालों की संख्या भी चिंताजनक है:

>> कल्याण: 2023 में 114 मौतें, 2024 में बढ़कर 116.

>> वसई: 2023 और 2024 में 45-45 मौतें.

कब जागेगा प्रशासन?

मुंबई लोकल हर दिन लाखों लोगों को उनकी मंज़िल तक पहुंचाती है, लेकिन हजारों को मौत की घाट भी उतार देती है. अवधेश दुबे की मौत कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की नाकामी का उदाहरण है. सवाल वही है—क्या सरकार और रेलवे प्रशासन इसे सिर्फ़ आंकड़ों तक सीमित रखेगा, या कोई ठोस क़दम उठाएगा? मुंबई अब और इंतज़ार नहीं कर सकती!

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