Updated on: 13 March, 2025 09:58 AM IST | mumbai
भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है, इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि दहन शुभ मुहूर्त में ही किया जाए.
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होली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है और इसका प्रारंभ होलिका दहन से होता है. फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है, जिसे ‘छोटी होली’ भी कहा जाता है. यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.
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होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन का सीधा संबंध पौराणिक कथाओं से जुड़ा है. कथा के अनुसार, भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए उसकी चाची होलिका ने उसे गोद में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया था, क्योंकि उसे यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए. तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जो यह संदेश देती है कि अहंकार और अन्याय का अंत निश्चित है.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन को लेकर शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस वर्ष होलिका दहन के लिए अत्यंत शुभ समय निम्नलिखित है:
>> शुभ मुहूर्त: शाम 6:24 बजे से 8:51 बजे तक
>> भद्रा काल समाप्ति: दोपहर 2:01 बजे
>> पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: सुबह 9:54 बजे
>> पूर्णिमा तिथि समाप्त: अगले दिन सुबह 12:29 बजे
शास्त्रों के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है, इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि दहन शुभ मुहूर्त में ही किया जाए.
होलिका दहन की विधि
>> होलिका दहन के स्थान पर लकड़ियां, उपले और सूखे पत्ते एकत्रित किए जाते हैं.
>> पूजा के दौरान होलिका और प्रह्लाद की प्रतीकात्मक मूर्तियां स्थापित की जाती हैं.
>> गंगा जल छिड़ककर पवित्रता के साथ पूजा की जाती है.
>> नारियल, गेहूं, चना, गुड़ और अन्य हवन सामग्री अग्नि में अर्पित की जाती है.
>> होलिका दहन के बाद इसकी राख को घर लाकर तिलक किया जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है.
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