Updated on: 12 April, 2025 05:33 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
जब केंद्र और राज्य में अलग सरकारें हैं तो टकराव की स्थिति हो जाती है. राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाती है. केंद्र के अनुसार निर्णय लेते हैं.
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
राज्यपाल अक्सर विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर अपनी मुहर नहीं लगाते और कहते हैं कि मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं तो अक्सर टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है. व्यवहार में, राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र द्वारा (संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति द्वारा) की जाती है. आमतौर पर देखा गया है कि राज्यपाल केंद्र के अनुसार निर्णय लेते हैं. इससे अक्सर केंद्र और राज्य के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है. इसमें सबसे बड़ा हथियार यह है कि राज्य इसे स्वीकार नहीं करता और इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है. कई बार ऐसे विधेयक राष्ट्रपति के पास लम्बे समय तक अटके रहते हैं. हाल ही में तमिलनाडु और केरल के मामलों में ऐसा देखा गया है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में राष्ट्रपति के लिए ऐसे विधेयक पर निर्णय लेने की समयसीमा तय की है. राष्ट्रपति को अब ऐसे विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा. फिर वह इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा. यह ऐतिहासिक फैसला तब आया जब न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल के उस फैसले को पलट दिया जिसमें उन्होंने लंबे समय से लंबित विधेयक को मंजूरी नहीं दी थी. यह आदेश शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया. तमिलनाडु मामले में यह फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा कार्यों का निर्वहन न्यायिक समीक्षा के अधीन है. अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब राज्यपाल किसी विधेयक को सुरक्षित रखता है, तो राष्ट्रपति उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है. हालाँकि, संविधान में इस निर्णय के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है. सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि राष्ट्रपति के पास `पॉकेट वीटो` का अधिकार नहीं है और उन्हें या तो अनुमति देनी होगी या उसे रोकना होगा.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, "कानूनी स्थिति यह है कि जहां किसी कानून के तहत किसी शक्ति के प्रयोग के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है, वहां भी इसका प्रयोग उचित समय के भीतर किया जाना चाहिए. यह नहीं कहा जा सकता कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से अछूता रह सकता है."
न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया है कि यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर निर्णय लेने में तीन महीने से अधिक समय लेते हैं, तो उन्हें देरी के लिए वैध कारण बताना होगा. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "हम निर्देश देते हैं कि राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा विचार के लिए सुरक्षित रखे गए विधेयक पर निर्णय उस तिथि से तीन महीने के भीतर लेंगे, जिस दिन यह उन्हें प्राप्त होगा." सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "यदि राष्ट्रपति उचित समय सीमा के भीतर कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो प्रभावित राज्य कानूनी सहारा ले सकता है और समझौते के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है."
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