Updated on: 07 April, 2025 04:30 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की.
फ़ाइल चित्र
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसे दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद ने पारित कर दिया. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की. प्रेस बयान में, एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर "मनमाना, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित" होने का कड़ा विरोध किया गया है. इसमें कहा गया है कि संशोधनों ने न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट रूप से सरकार की मंशा को दर्शाता है कि वह वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहती है, इसलिए मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
रिपोर्ट के मुताबिक इसमें कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म का पालन करने, प्रचार करने और धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने के अधिकार को सुनिश्चित करते हैं. इसमें कहा गया है कि नया कानून मुसलमानों को इन मौलिक अधिकारों से वंचित करता है.
बयान में कहा गया है कि "केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चयन के संबंध में संशोधन इस वंचितता का स्पष्ट प्रमाण है. इसके अतिरिक्त, वक्फ (दाता) के लिए पांच साल की अवधि के लिए मुस्लिम होना आवश्यक है, जो भारतीय कानूनी ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 14 और 25, साथ ही इस्लामी शरिया सिद्धांतों दोनों का खंडन करता है." रिपोर्ट के अनुसार प्रेस विज्ञप्ति में कानून को भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ असंगत बताते हुए कहा गया कि अन्य धार्मिक समुदायों, हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और बौद्धों को दिए जाने वाले अधिकार और सुरक्षा मुस्लिम वक्फ, औकाफ को नहीं दी गई.
बोर्ड ने कहा कि शीर्ष अदालत "संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक" होने के नाते इन "विवादास्पद संशोधनों को रद्द कर देना चाहिए, संविधान की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए" और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को "कुचलने" से बचाना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक अधिवक्ता एम आर शमशाद ने याचिका का निपटारा किया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तल्हा अब्दुल रहमान, महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी के माध्यम से शामिल थे.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT