Updated on: 26 January, 2025 08:56 AM IST | mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
हिंदू धर्म में मान्यता है कि रंग हमारे विचारों और भावनाओं पर प्रभाव डालते हैं. काले रंग को तमसिक गुणों वाला माना जाता है, जो आलस्य, अज्ञानता और नकारात्मकता को बढ़ावा दे सकता है.
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भारतीय संस्कृति में रंगों का विशेष महत्व है. प्रत्येक रंग का एक विशिष्ट अर्थ और प्रभाव होता है, जिसे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार समझा जाता है. इन्हीं मान्यताओं के आधार पर शुभ कार्यों में काले रंग के कपड़े पहनने से बचने की सलाह दी जाती है.
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काला रंग और उसकी सांस्कृतिक मान्यता
भारत में काले रंग को अक्सर नकारात्मकता, शोक और अशुभता का प्रतीक माना जाता है. आम धारणा है कि यह रंग नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और उत्सव के माहौल को प्रभावित कर सकता है. विवाह, गृह प्रवेश, धार्मिक पूजा, नामकरण संस्कार, जैसे शुभ कार्यों में लोग पारंपरिक रूप से उज्ज्वल और रंगीन वस्त्रों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे वातावरण में सकारात्मकता बनी रहे.
धार्मिक दृष्टिकोण
हिंदू धर्म में मान्यता है कि रंग हमारे विचारों और भावनाओं पर प्रभाव डालते हैं. काले रंग को तमसिक गुणों वाला माना जाता है, जो आलस्य, अज्ञानता और नकारात्मकता को बढ़ावा दे सकता है. यही कारण है कि शुभ कार्यों में काले रंग के उपयोग से बचने की परंपरा चली आ रही है. इसके विपरीत, लाल, पीला, हरा और सफेद जैसे रंगों को समृद्धि, शांति और शुभता का प्रतीक माना जाता है.
विज्ञान और मनोविज्ञान का दृष्टिकोण
रंगों का प्रभाव न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण होता है. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, काला रंग अवसाद और उदासी की भावनाओं को बढ़ा सकता है. शुभ कार्यों में हल्के और चमकीले रंग सकारात्मकता, उल्लास और आनंद का संचार करते हैं, जिससे समारोह की ऊर्जा उच्च बनी रहती है.
परंपराओं और रीति-रिवाजों का महत्व
शुभ अवसरों पर रंगों का चयन हमारी सांस्कृतिक परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. जब हम शुभ कार्यों में भाग लेते हैं, तो पारंपरिक मान्यताओं का पालन कर एक सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं. यही कारण है कि काले रंग की बजाय पारंपरिक और उज्ज्वल रंगों को पहनना बेहतर माना जाता है.
हालांकि आधुनिक समय में कई लोग काले रंग को फैशन और स्टाइल का प्रतीक मानते हैं, लेकिन पारंपरिक दृष्टिकोण से यह शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता. शुभ कार्यों में हल्के और सकारात्मकता बढ़ाने वाले रंगों को अपनाना न केवल भारतीय संस्कृति का सम्मान है, बल्कि यह हमारे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी उचित है.
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